शनिवार, सितम्बर 13, 2025

कोरबा में बच्चों की थाली में पौष्टिक नाश्ता: गैस चूल्हों से धुएं से मुक्ति और शिक्षा में नई ऊर्जा

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कोरबा (आदिनिवासी) | कोरबा जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों और प्राथमिक-मध्य विद्यालयों में अब बच्चों की थाली में सिर्फ भोजन ही नहीं, बल्कि सेहत, ऊर्जा और उम्मीद भी परोसी जा रही है।

डीएमएफ (जिला खनिज न्यास) से मिले सहयोग और प्रशासन की पहल पर यहां गैस चूल्हों से खाना पकने लगा है, जिससे धुएं से मुक्ति मिली है। साथ ही, बच्चों को रोजाना अलग-अलग पौष्टिक नाश्ता — खीर, पूरी, हलवा, खिचड़ी, पोहा, भजिया और सेवई परोसा जा रहा है।

पहले चूल्हे पर खाना पकाना रसोइयों और सहायिकाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती था। बरसात में गीली लकड़ियां, धुएं से भरी रसोई और जलती आंखों के बीच भोजन तैयार करना बेहद कठिन होता था। अब गैस चूल्हों ने यह मुश्किल आसान कर दी है।

लामपहाड़ आंगनबाड़ी की सहायिका सुलोचनी यादव कहती हैं —
“अब मिनटों में बिना धुएं और परेशानी के नाश्ता तैयार हो जाता है। बच्चों को गरम-गरम भोजन मिलता है और हमें भी काम करने में सुविधा होती है।”

खाने की विविधता बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र है। ग्राम धोबघाट प्राथमिक शाला की छात्रा प्रियांशी और कक्षा पाँचवीं के छात्र भूपेश कहते हैं —
“हर दिन अलग-अलग स्वादिष्ट नाश्ता मिलने से हमें स्कूल आना अच्छा लगता है। खीर, पूरी, हलवा और भजिया सब कुछ मजेदार होता है।”

कोरबा ब्लॉक के दूरस्थ ग्राम लामपहाड़ में रहने वाले पहाड़ी कोरवा जनजाति के बच्चों की उपस्थिति में भी बदलाव आया है। पहले जो बच्चे सुबह परिवार के साथ जंगल चले जाते थे, अब समय पर आंगनबाड़ी और स्कूल पहुँच रहे हैं।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुशीला तिर्की बताती हैं —
“यहां आने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब और वंचित परिवारों से हैं। घर पर पर्याप्त आहार नहीं मिलता, ऐसे में यह नाश्ता और भोजन उनके शारीरिक विकास के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रहा है।”

पाली ब्लॉक के ग्राम पण्डोपारा की निवासी पूजा पण्डों कहती हैं —
“पहले बच्चे बहाने बनाकर स्कूल जाने से कतराते थे, अब सुबह नाश्ते के लिए उत्सुक रहते हैं। मेरे तीनों बच्चे आंगनबाड़ी और स्कूल में नियमित जाने लगे हैं।”

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निर्देश और मंत्री लखनलाल देवांगन के मार्गदर्शन में कलेक्टर अजीत वसंत ने जिलेभर के स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में नाश्ते की व्यवस्था सुनिश्चित की।
हर स्कूल और आंगनबाड़ी में मेनू बोर्ड लगाकर स्थानीय उपलब्धता और बच्चों की पसंद के अनुसार भोजन तय किया गया है।

प्रधानपाठक चैनसिंह पुहुप बताते हैं —
“नाश्ते की वजह से बच्चों की नियमित उपस्थिति बढ़ी है और उनमें पढ़ाई के प्रति रुचि भी जगी है।”

सवा दो लाख बच्चों को मिला लाभ

14 अगस्त 2024 से शुरू हुई यह पहल अब जिले के हर विकासखंड तक पहुँच चुकी है।

2,602 आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 माह से 6 वर्ष तक के लगभग 1 लाख 4 हजार बच्चे,

1,502 प्राथमिक स्कूलों में 73,810 विद्यार्थी,

और 537 मिडिल स्कूलों में 47,122 विद्यार्थी
इस योजना से लाभान्वित हो रहे हैं।

डीएमएफ से गैस सिलेंडर और रिफिलिंग की व्यवस्था कर दी गई है ताकि भोजन समय पर और आसानी से तैयार हो सके।

यह पहल केवल भोजन वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा और सामाजिक बदलाव का माध्यम भी बन रही है। पौष्टिक आहार बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक है, वहीं गैस चूल्हों ने रसोईयों की सेहत की रक्षा की है। जनजातीय और वंचित परिवारों के बच्चों की उपस्थिति में सुधार बताता है कि योजनाओं का सही क्रियान्वयन बच्चों के भविष्य को संवार सकता

(प्रशासनिक सूत्रों पर आधारित)

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