कोरबा (आदिनिवासी)। छत्तीसगढ़ में कोरबा जिले के कटघोरा नगर पालिका चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी पवन अग्रवाल की एक आपत्तिजनक जातिगत टिप्पणी ने सियासी हलचल मचा दी है। उन्होंने आदिवासी समुदाय को लेकर अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया, जिससे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) और आदिवासी समाज में आक्रोश फैल गया।
यह विवाद 31 जनवरी को कटघोरा के एसडीएम सभाकक्ष में हुआ, जहां नगर पालिका चुनाव को लेकर ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया था।
चुनाव आयोग द्वारा प्रत्याशियों को ईवीएम प्रक्रिया समझाई जा रही थी। इसी दौरान भाजपा प्रत्याशी पवन अग्रवाल खुद को ज्यादा समझदार दिखाने की कोशिश में एकाएक बोल पड़े;
“हमें ईवीएम के बारे में मत समझाइए, हम कोई ‘गोंड गंवार’ थोड़े हैं।”
पवन अग्रवाल की इस टिप्पणी को आदिवासी समुदाय ने अपनी गरिमा पर हमला माना। गोंगपा और कई आदिवासी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया और कानूनी कार्रवाई की मांग उठाई। जनता के बढ़ते दबाव और संगठनों के आक्रोश के बाद पुलिस ने अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत पवन अग्रवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
राजनीतिक हलचल और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
घटना के बाद से कोरबा जिले में राजनीतिक माहौल गरमा गया है। चुनाव आयोग ने मामले को गंभीरता से लिया है और कहा है कि ऐसे बयान लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। आयोग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
स्थानीय जनता का आक्रोश और विरोध प्रदर्शन
कटघोरा और आस-पास के क्षेत्रों में आदिवासी संगठनों ने विरोध मार्च निकाले, पुतले जलाए और नारेबाजी की। लोगों का कहना है कि इस तरह की भाषा न सिर्फ अपमानजनक है बल्कि समाज में नफरत फैलाने का काम करती है। आदिवासी समुदाय के नेताओं ने कहा कि यह केवल एक जाति विशेष का नहीं बल्कि पूरे आदिवासी समाज का अपमान है।
पवन अग्रवाल पर अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। यह अधिनियम समाज के कमजोर वर्गों के खिलाफ भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार को रोकने के लिए बनाया गया है।
चुनाव आयोग ने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं। पुलिस मामले की जांच कर रही है और पवन अग्रवाल से पूछताछ की जा रही है। वहीं, स्थानीय जनता और आदिवासी संगठनों का दबाव बना हुआ है कि आरोपी पर सख्त कार्रवाई की जाए।
इस घटना ने दिखा दिया है कि चुनावी माहौल में बोले गए शब्द कितने संवेदनशील हो सकते हैं। नेताओं को भाषण के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि समाज के किसी वर्ग की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। यह मामला न सिर्फ एक राजनीतिक विवाद है बल्कि सामाजिक सम्मान और समानता का भी सवाल है।