कोरबा (आदिनिवासी)। जिला कांग्रेस कमेटी के ग्रामीण अध्यक्ष सुरेन्द्र प्रताप जायसवाल और शहर अध्यक्ष सपना चौहान ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर तीखा हमला बोला है। उनका आरोप है कि 18वीं लोकसभा के शीतकालीन सत्र में बीजेपी ने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का अपमान किया, जो देश के संसदीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गया है।
कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के दलों ने संसद में संविधान पर चर्चा की मांग की थी, जो पहले कई बार ठुकराई गई। अंततः जब चर्चा की अनुमति मिली, तो विपक्ष ने डॉ. अंबेडकर के आदर्शों—समता, समानता और न्याय—पर सरकार को आइना दिखाया। लेकिन सत्ता पक्ष ने विपक्ष की आवाज को दबाने और चर्चा को प्रभावित करने की कोशिश की।
अमित शाह का बयान और विवाद
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया, “अभी एक फैशन हो गया है—अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।” इस बयान ने संसद में बवाल मचा दिया। कांग्रेस ने इसे न केवल डॉ. अंबेडकर का अपमान बताया, बल्कि बीजेपी और संघ की “मनुवादी मानसिकता” का खुलासा भी कहा।
सपना चौहान ने कहा कि बीजेपी संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने की साजिश कर रही है। 2024 के आम चुनावों में जनता ने उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया था। लेकिन अब बीजेपी इस हार की खीज संविधान और डॉ. अंबेडकर पर निकाल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ने इस विवाद को और गहरा दिया है।
विपक्ष की मांग: इस्तीफा और जवाबदेही
विपक्ष ने अमित शाह से इस्तीफे की मांग की है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि सरकार ने विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए सांसदों के साथ धक्का-मुक्की की। खड़गे खुद गिर पड़े, और राहुल गांधी पर संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई।
जायसवाल और चौहान ने कहा कि बीजेपी और उसकी मातृसंस्था हमेशा से डॉ. अंबेडकर और संविधान विरोधी रही हैं। डॉ. अंबेडकर को चुनाव हराने से लेकर संविधान का विरोध करने तक, इनका इतिहास इसका गवाह है।
जायसवाल और चौहान ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस तब तक विरोध प्रदर्शन जारी रखेगी, जब तक अमित शाह इस्तीफा नहीं देते। उनका कहना है कि यह केवल डॉ. अंबेडकर का अपमान नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों पर हमला है।
विपक्ष ने इस मुद्दे को जनता तक ले जाने की तैयारी कर ली है। संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए यह संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि एक आदर्श की लड़ाई बन गई है।
यह विवाद संविधान के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और लोकतंत्र के महत्व को समझने का अवसर भी है। सवाल यह है कि क्या हम अपने आदर्शों की रक्षा के लिए खड़े होंगे?