शनिवार, मई 31, 2025

भारत-पाकिस्तान संघर्ष: मौन युद्ध और अचानक युद्धविराम का भू-राजनीतिक विश्लेषण

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बिना युद्ध के युद्ध विराम?

मौन रणनीति से अचानक युद्धविराम तक: क्या भारत की कूटनीति विफल हुई?

पहलगाम में 26-28 नागरिकों की नृशंस हत्या के पश्चात, मोदी सरकार ने सुनियोजित रणनीति के तहत पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों पर हमले का निर्णय लिया। भारतीय सेना ने अपने अद्वितीय शौर्य एवं परिष्कृत युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हुए, औपचारिक युद्ध की घोषणा किए बिना ही आतंकी अड्डों को निशाना बनाया। प्रत्युत्तर में, पाकिस्तान ने विभिन्न मोर्चों पर आक्रामक कार्रवाई की, जिसे भारतीय सेना ने अपनी सामरिक क्षमता से विफल कर, राष्ट्र को महत्वपूर्ण क्षति से सुरक्षित रखा।

22 अप्रैल को पहलगाम नरसंहार के उपरांत से लेकर युद्धविराम की औपचारिक घोषणा तक, प्रधानमंत्री ने न तो राष्ट्र को संबोधित किया और न ही कोई सार्वजनिक वक्तव्य जारी किया। वास्तविक अर्थों में, भारत-पाकिस्तान के मध्य पूर्ण युद्ध प्रारंभिक अवस्था में ही था। विश्व की तीन महाशक्तियों—अमेरिका, चीन और रूस—में से केवल चीन ही पाकिस्तान का खुला समर्थन कर रहा था। रूस, जो परंपरागत रूप से भारत का मित्र रहा है, ने स्पष्ट दृष्टिकोण व्यक्त नहीं किया। अमेरिका, जिसे विश्व राजनीति का प्रभावशाली खिलाड़ी माना जाता है और जिसके राष्ट्रपति को भारतीय प्रधानमंत्री का निकट मित्र बताया जाता रहा है, तटस्थ बना रहा।

एक अपेक्षाकृत छोटा देश पाकिस्तान, कभी अमेरिका तो कभी चीन के सहयोग से भारत जैसे विशाल राष्ट्र को निरंतर चुनौती देता रहा है। यद्यपि अमेरिका और चीन परस्पर प्रतिद्वंद्वी हैं, दोनों ने पाकिस्तान के माध्यम से भारत को रणनीतिक रूप से सीमित करने की नीति पर पिछले चार-पांच दशकों से कार्य किया है। जब तक भारत में कांग्रेस का शासन था, तब तक अमेरिका को अत्यधिक महत्व नहीं दिया गया था। परंतु भाजपा नेतृत्व वाली मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के उपरांत, भारत का अमेरिका के प्रति झुकाव प्रत्यक्ष हो गया है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीतिगत परिवर्तन के फलस्वरूप चीन ने न केवल भारत से दूरी बढ़ाई है, अपितु पाकिस्तान को अपने पक्ष में करने हेतु व्यापक सहयोग भी प्रदान किया है।

“ऑपरेशन सिंदूर” के लक्षित हमलों के पश्चात, पाकिस्तान ने जिस प्रकार भारत पर प्रतिकार किया और चीन तथा तुर्की के अत्याधुनिक हथियारों का उपयोग किया, वह सामान्य परिस्थिति नहीं थी। मोदी सरकार पिछले दशक से जनता के सूचना के अधिकार पर अंकुश लगाती रही है। मुख्यधारा का मीडिया किस प्रकार अनुकूलित हो गया है, यह जनता भली-भांति समझ चुकी है। प्रधानमंत्री की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा में, कुछ मीडिया संस्थानों ने यहां तक दावा कर दिया कि भारत ने इस्लामाबाद पर अधिकार कर लिया है। ऐसी परिस्थितियों में, जनता को यह कैसे ज्ञात होगा कि पाकिस्तानी आक्रमण में भारत को किन-किन क्षेत्रों में कितनी हानि हुई है?

राफेल जैसे अत्याधुनिक विमानों की स्थिति पर भी सरकार पारदर्शी नहीं है। पहलगाम में शामिल आतंकवादियों का क्या हुआ—क्या वे मारे गए या पाकिस्तान भाग गए—इसकी भी पुष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। जब समस्त राष्ट्र पहलगाम हमले का प्रतिशोध लेने की प्रतीक्षा कर रहा था और विपक्ष भी बिना किसी राजनीतिक विवाद के सरकार के साथ खड़ा था, तब प्रधानमंत्री के तथाकथित मित्र डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक युद्धविराम की घोषणा कर 140 करोड़ भारतीयों को आश्चर्यचकित कर दिया।

(लेखक: के.आर. शाह)

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मोदी सरकार की विदेश नीति एवं कूटनीति में कहीं न कहीं महत्वपूर्ण त्रुटि रही है। इस विसंगति ने भारत को अमेरिका के समक्ष एक प्रकार से आत्मसमर्पण की स्थिति में ला खड़ा किया है। इस संपूर्ण घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो विपक्ष से संवाद स्थापित कर रहे हैं और न ही राष्ट्र को कोई स्पष्टीकरण दे रहे हैं। क्या प्रधानमंत्री लोकसभा भंग कर नये आम चुनाव का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं अथवा कोई अन्य रणनीतिक योजना विकसित कर रहे हैं, अब यह तो केवल वही बता सकते हैं।
(लेखक: के.आर. शाह, संपादक, आदिवासी सत्ता)

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