गुरूवार, जून 5, 2025

संघर्षों से सफलता तक: भोलाराम की प्रेरक यात्रा!

Must Read

नौकरी मिलने के बाद जीवन में बड़ा बदलाव

कोरबा (आदिनिवासी)| कोरबा विकासखंड के ग्राम कोरई के रहने वाले भोलाराम की कहानी आज उन हजारों लोगों के लिए प्रेरणा बन रही है जो कठिनाइयों और गरीबी के बीच संघर्ष करते हुए बेहतर जीवन की उम्मीद रखते हैं। पहाड़ी कोरवा जनजाति से ताल्लुक रखने वाले भोलाराम का जीवन जंगलों और खेतों तक ही सीमित था। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव आएगा जो न केवल उनकी बल्कि उनके पूरे परिवार की तकदीर बदल देगा।

भोलाराम का जन्म और परवरिश एक ऐसे परिवार में हुई, जहां पीढ़ियों से जंगल पर निर्भर रहना जीवन का हिस्सा था। बचपन में उन्होंने गांव के स्कूल में पढ़ाई शुरू की और किसी तरह पांचवीं व आठवीं की कक्षाएं पूरी कीं। पढ़ाई के बाद छोटे से खेत में काम करना और आसपास मजदूरी करना उनकी दिनचर्या बन गई। समय बीतता गया, शादी हुई और परिवार बढ़ा, लेकिन गरीबी का दंश कभी खत्म नहीं हुआ।

भोलाराम को कभी तीर-धनुष लेकर जंगल में जाना पड़ता, तो कभी घर की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती। पैदल चलने वाला यह संघर्षशील व्यक्ति नहीं जानता था कि उसकी किस्मत एक दिन ऐसी करवट लेगी कि वह स्कूटी पर सफर करेगा और अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निभा पाएगा।

भोलाराम की जिंदगी में बड़ा बदलाव तब आया, जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निर्देश पर विशेष पिछड़ी जनजाति (PVTG) परिवारों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए जिला प्रशासन ने पहल शुरू की। कलेक्टर अजीत वसंत की अगुवाई में जिले में शिक्षित बेरोजगार युवाओं को डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड) के तहत स्कूलों और अस्पतालों में नौकरी देने का प्रयास किया गया।

इसी पहल के तहत भोलाराम को ग्राम माचाडोली के शासकीय उच्चतर विद्यालय में चतुर्थ श्रेणी भृत्य के पद पर नियुक्ति मिली। यह नौकरी उनके लिए किसी सपने के सच होने जैसा था। अब उनके पास नियमित आय का साधन था, जिससे उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारना शुरू किया।

भोलाराम का कार्यस्थल उनके घर से करीब 30 किलोमीटर दूर था। रास्ते में सार्वजनिक परिवहन की कमी के कारण समय पर स्कूल पहुंचना उनके लिए मुश्किल था। हालांकि, उन्होंने माचाडोली में अपने कार्यस्थल के पास रहने की व्यवस्था की, लेकिन अवकाश के दिनों में घर आना-जाना अभी भी एक चुनौती बना हुआ था।

समस्या का समाधान ढूंढते हुए भोलाराम ने अपनी तनख्वाह से बचत कर किश्तों पर एक बैटरी वाली स्कूटी खरीदी। स्कूटी चलाना सीखने के बाद, अब वह न केवल समय पर स्कूल पहुंच पाते हैं, बल्कि अपने परिवार के साथ घूमने-फिरने का आनंद भी लेते हैं। उनकी पत्नी प्रमिला बाई ने बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि पति के साथ स्कूटी में बैठकर बाहर जाने का मौका मिलेगा।

भोलाराम मानते हैं कि शिक्षा ही उनकी जिंदगी में बदलाव की सबसे बड़ी वजह है। वह खुद ज्यादा नहीं पढ़ सके, लेकिन अब वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके साथ ही, वह अपने समाज के लोगों को भी शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक कर रहे हैं।

कोरबा जिले में भोलाराम जैसे 119 पीवीटीजी युवाओं को जुलाई 2024 से अतिथि शिक्षक, भृत्य और वार्ड बॉय के पदों पर नौकरी दी गई है। यह पहल न केवल उनके जीवन स्तर को सुधार रही है, बल्कि समाज में एक नई ऊर्जा का संचार कर रही है।

भोलाराम की कहानी यह साबित करती है कि यदि अवसर और संसाधन मिलें, तो हर व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है। यह पहल पहाड़ी कोरवा समुदाय जैसे वंचित वर्गों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरी है।

- Advertisement -
  • nimble technology
Latest News

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: स्कूली युक्तियुक्तकरण के विरोध में गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन का प्रदर्शन, सौंपा ज्ञापन

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन ने स्कूलों के युक्तियुक्तकरण के सरकारी निर्णय के विरुद्ध आज ज्ञापन सौंपकर...

More Articles Like This