जान बचाने के लिए “आर-पार” की लड़ाई लड़ने की मजबूरी क्यों?
कोरबा (आदिनिवासी)। पिछले सात वर्षों से, कटघोरा वन मंडल के पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के लगभग 60-70 वनांचल गाँवों के निवासी एक गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं – जंगली हाथियों का बढ़ता आतंक। यह समस्या न केवल जान-माल की हानि का कारण बन रही है, बल्कि स्थानीय कृषि अर्थव्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है।
ग्रामीणों का विरोध प्रदर्शन
18 सितंबर को, स्थानीय नेता विरेन्द्र मरकाम के नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामीणों ने चोटिया बाजार भांठा में एक विशाल धरना प्रदर्शन आयोजित किया। “हाथी भगाओ, जान बचाओ” के नारे के साथ, प्रदर्शनकारियों ने सात घंटे तक अपनी मांगें रखीं और प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि समस्या का समाधान नहीं किया गया तो वे चक्का जाम करेंगे।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
प्रशासन ने एक सप्ताह का समय मांगा और 23 सितंबर को पोड़ी उपरोड़ा के एसडीएम टी. आर. भारद्वाज की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में विभिन्न विभागों के अधिकारी, जनप्रतिनिधि और प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीण शामिल हुए।
बैठक के परिणाम
पांच घंटे की बैठक में निम्नलिखित निर्णय लिए गए:
1. हाथी प्रभावित गांवों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना।
2. प्रभावित क्षेत्रों में विद्युत सर्वेक्षण कराना।
3. मुआवजे की प्रक्रिया में चल रहे भ्रष्टाचार पर कड़े निर्देश जारी करना।
4. ग्राम पंचायतों से झटका तार लगाने के प्रस्ताव मांगना।
ग्रामीणों की हताशा
हालांकि, ये निर्णय ग्रामीणों को संतुष्ट करने में पूरी तरह विफल रहे। विरेन्द्र मरकाम ने कहा, “प्रशासन ने बिना कोई ठोस समाधान के, केवल बैठक की खानापूर्ति की है, हमें इससे कोई संतुष्टि नहीं मिली। अगर हमारी मांगों पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो हम आर-पार की लड़ाई लड़ने को मजबूर होंगे।”
यह स्थिति मानव-वन्यजीव संघर्ष की जटिलता को दर्शाती है। एक ओर, बढ़ती हाथी आबादी पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं दूसरी ओर यह स्थानीय समुदायों के लिए गंभीर खतरा बन गई है। प्रशासन इन दोनों पहलुओं के बीच संतुलन बनाने की चुनौती का सामना कर रहा है।
समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. हाथियों के लिए सुरक्षित गलियारे का निर्माण।
2. स्थानीय समुदायों को हाथियों से बचाव के उपायों के बारे में शिक्षित करना।
3. फसल क्षति के लिए त्वरित और पर्याप्त मुआवजा सुनिश्चित करना।
4. वन विभाग और स्थानीय समुदायों के बीच बेहतर संचार और सहयोग स्थापित करना।
“यदि इस मुद्दे का जल्द समाधान नहीं किया गया, तो यह क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सामाजिक अशांति का कारण बन सकता है। प्रशासन और वन विभाग को मिलकर एक ठोस और दीर्घकालिक समाधान खोजने की आवश्यकता है जो मानव और वन्यजीव दोनों के हितों की रक्षा करे।”
“यदि इस मुद्दे का जल्द समाधान नहीं किया गया, तो यह क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सामाजिक अशांति का कारण बन सकता है। प्रशासन और वन विभाग को मिलकर एक ठोस और दीर्घकालिक समाधान खोजने की आवश्यकता है जो मानव और वन्यजीव दोनों के हितों की रक्षा करे।”