रायपुर (आदिनिवासी)। छत्तीसगढ़ में धान की रोपाई का महत्वपूर्ण समय चल रहा है, लेकिन राज्य की अधिकांश सहकारी समितियों में डीएपी खाद की कमी के कारण किसान परेशानी में हैं। जुलाई माह के अंत में जब बुआई-रोपाई का काम जोरों पर है, तब खाद की यह समस्या किसानों के लिए गंभीर चुनौती बन गई है।
सरकारी दावों और हकीकत में अंतर
सरकार लगातार दावा कर रही है कि सहकारी समितियों में खाद-बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। किसानों से आधार कार्ड जमा कराया जा रहा है और उन्हें अपनी बारी का इंतजार करने को कहा जा रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि किसान दो-तीन दिन तक अपना सारा काम-धंधा छोड़कर सहकारी समितियों के चक्कर काट रहे हैं। अंत में उन्हें यह कहकर वापस भेज दिया जाता है कि खाद समाप्त हो गया है और दोबारा आने पर मिलेगा।
छोटे किसानों की मजबूरी
किसानों के अनुसार, प्रभावशाली लोगों को पर्याप्त मात्रा में खाद मिल जाता है, जबकि छोटे किसान या तो सहकारी समितियों के चक्कर काटने को मजबूर हैं या फिर खुले बाजार से महंगी दरों पर खाद खरीदना पड़ रहा है। यह स्थिति किसानों की आर्थिक कठिनाइयों को और भी बढ़ा रही है।
किसान संगठन की चेतावनी
छत्तीसगढ़ किसान महासभा के संयोजक नरोत्तम शर्मा ने इस स्थिति के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की किसान विरोधी नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकारें दिल्ली के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दबाव में रद्द किए गए तीन काले कानूनों को पिछले दरवाजे से लागू करने की कोशिश कर रही हैं।
कृषि नीति में बदलाव की आशंका
श्री शर्मा के अनुसार, केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को कृषि मार्केटिंग पर राष्ट्रीय नीति की रूपरेखा का मसौदा भेजा है। इसी आधार पर छत्तीसगढ़ सरकार ने मानसून सत्र में कृषि बाजार कानून में संशोधन किया है। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि इस मामले में विधानसभा में विपक्ष द्वारा भी मजबूत विरोध दर्ज नहीं किया गया।
संगठित संघर्ष की तैयारी
छत्तीसगढ़ किसान महासभा किसानों की आवाज विधानसभा से लेकर सड़कों तक उठाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। संगठन किसानों को एकजुट करके बड़ी लड़ाई की तैयारी कर रहा है।
यह स्थिति दर्शाती है कि रोपाई के इस महत्वपूर्ण समय में खाद की कमी न केवल किसानों की तात्कालिक समस्या है, बल्कि यह कृषि नीतियों में आने वाले बदलावों का संकेत भी हो सकती है।