शनिवार, जुलाई 27, 2024

जाति है और उसे बचा कर रखा गया है, हमें उसको खत्म करना होगा: दीपंकर भट्टाचार्य

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हर जाति के अंदर कुछेक एकदम दलित-गरीब जातियों को छोड़ दीजिए- तो बाकी करीब-करीब सभी जातियों के अंदर आपको पूंजीपति न भी मिले, तो सत्ता के दलाल जरूर मिलेंगे.

यहां एक बात एकदम स्पष्ट हो जानी चाहिए कि अगर हमारे साथी कहते हैं कि हमें भगत सिंह और अम्बेडकर को साथ लेकर चलना होगा जिसका मतलब है कि हमको वर्ग और जाति दोनों को लेकर चलना होगा, तो यह बात एकदम गलत है।हमें दोनों को लेकर नहीं चलना होगा. इस बात पर एकदम स्पष्ट हो जाइए. अगर हम जाति पर खड़े होकर वर्ग को समझेंगे, तो हम कुछ भी नहीं समझेंगे. जाति का मतलब क्या है? हर जाति के अंदर कुछेक एकदम दलित-गरीब जातियों को छोड़ दीजिए- तो बाकी करीब-करीब सभी जातियों के अंदर आपको पूंजीपति न भी मिले, तो सत्ता के दलाल जरूर मिलेंगे. हिंदुस्तान की जो व्यवस्था है, सत्ता है, उसने सब जगह जातियों के अंदर अपना घर बना लिया है, सभी जातियों के अंदर उसने अपने कुछ दलालों को पैदा कर लिया है।

इसीलिए अगर हम यह समझेंगे कि सबसे पहले जाति देखो, जो अपनी जाति के हैं, उनका विचार जो भी हो, राजनीति कुछ भी हो, वे हमारे अपने हैं, और इसके बाद हम बाकी लोगों को देखेंगे. ये प्रस्थापना कहीं से भी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रस्थापना के साथ, समाज परिवर्तन और जाति उन्मूलन के संघर्ष के साथ मेल नहीं खाती. यह तो तमाम चीजों को उलट कर रख देती है। इसलिए हमें समझना है कि जाति है, उसे बचा के रखा गया है, हमें उसको खत्म करना होगा।

हमें उस पर खड़े होकर सोचना नहीं होगा. हमें अपनी राजनीति को अपने आंदोलनों को उसके इर्द-गिर्द नहीं खड़ा करना है, हमें उसको खत्म करना है. इसके लिये हमें दो चीजों वर्ग और लिंग की लड़ाइयों को तेज करना होगा. वर्ग संघर्ष और महिलाओं की आजादी की लड़ाई ये दोनों लड़ाइयाँ जितनी तेज होंगी, उतना ही जाति के अंदर जो वर्गीय सत्य है, वह उजागर होगा।

याद कीजिये, हमने आरक्षण का समर्थन किया था। कुछ लोग गलत कहते हैं कि माले •वाले आरक्षण का विरोध करते थे। हमने कभी आरक्षण का विरोध नहीं किया, बल्कि जब कुछ लोगों ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण होना चाहिए और सवर्णों को भी 10 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए तो हमने कहा कि नहीं, आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक है उसको आर्थिक नहीं बनाना चाहिए. लेकिन आरक्षण हम क्यों चाह रहे हैं? हमने कहा कि हम इस मुगालते में नहीं हैं कि आरक्षण से देश में जाति प्रथा खत्म हो जाएगी, सामाजिक उत्पीड़न खत्म हो जाएगा, आरक्षण से शोषण खत्म हो जाएगा, हम कहीं से भी इस मुगालते में नहीं हैं।

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि किसी देश में हर दौर में शासकवर्ग को अपना थोड़ा विस्तार करना होता है. अगर शासक वर्ग आरक्षण के माध्यम से, मंडल कमीशन के माध्यम से कुछ लोगों को अपने में समाहित कर लेते हैं. अगर यह बात लोगों को आरक्षण के जरिए ही समझ में आये कि लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा एक ही राजनीति करते हैं, अगर यह बात लालू यादव-नीतीश कुमार के 25 साल के राज के बाद ही समझ में आए कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी एक ही राजनीति करते हैं, तो ठीक है।

अगर हमारे देश में शासक वर्ग उसको आप ब्राह्मणवादी क्या कहिएगा, नरेंद्र मोदी भी ब्राह्मण नहीं है – को समझना हो, मोदी को समझना हो, आरएसएस को समझना हो, तो ब्राह्मणवाद से नहीं समझ पाइएगा. मंडल आयोग के बाद जो सरकारें बनी हैं उनमें से किसी को नहीं समझ पाइएगा. अब पूरे देश में जिस कदर राजनीतिक-सामाजिक संरचना बदल रही है, उसमें जाति का पर्दा हटेगा और जो वर्गीय असलियत है, वर्ग का सच है, वह उजागर होगा, खुलकर सामने आएगा. इसीलिए हम आरक्षण का समर्थन करते हैं।

अम्बेडकर भी कहते हैं अंततोगत्वा सारी जातियां खत्म होने के बाद भी देश में दो वर्ग रह जाएंगे एक शासन करने वाले और दूसरे जिनके ऊपर शासन हो रहा है. इस वर्गीय असलियत को चाहे शासन के अंदर से समझें, पूंजी और मजदूर के रूप में समझें, अमीर-गरीब के रूप में समझें, किसी भी रूप में समझें, यह वर्गीय असलियत खुलकर सामने आए, उसके ऊपर से जाति का पर्दा या चश्मा हट जाए, तो अच्छा है, हमें इस द्वंद्ववाद को, मार्क्सवाद को समझना होगा. इसी मार्क्सवाद के आधार पर हमने आरक्षण का समर्थन किया।
सारी समस्याओं का समाधान मार्क्सवाद से ही सम्भव है।


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