बालकोनगर (आदिनिवासी)। कोरबा जिले के बालकोनगर में प्रदूषण के खिलाफ जंग की एक लंबी कहानी जो दिल को छू लेती है। बालको के कूलिंग टावर और कोल यार्ड से प्रभावित शांतिनगर और रिंग रोड बस्ती के करीब 199 परिवार पिछले 12 सालों से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन परिवारों का कहना है कि प्रदूषण ने उनकी जिंदगी को नर्क बना दिया है, और बालको प्रबंधन उनकी सुनवाई नहीं कर रहा। आज अनुविभागीय अधिकारी (SDM) सरोज मंहिलागे की अध्यक्षता में हुई त्रिपक्षीय वार्ता में इन परिवारों ने अपनी व्यथा सुनाई, जिसने सबका ध्यान खींचा।
जानिए क्या हुआ बैठक में
आज की इस अहम बैठक में शांतिनगर पुनर्वास समिति ने साफ शब्दों में कहा कि बालको प्रबंधन ने 12 सालों से प्रभावित परिवारों को न तो पुनर्वास दिया और न ही स्थायी रोजगार। समिति के सदस्यों ने बताया कि मार्च 2024 में हुए सर्वे में 46 नए प्रभावित परिवारों को शामिल किया गया, जिन्हें पहले की सूची में जानबूझकर छोड़ दिया गया था। वहीं, कोल यार्ड से प्रभावित 76 परिवारों ने सितंबर 2024 के सर्वे के आधार पर विस्थापन की मांग रखी। बैठक में यह भी सामने आया कि कूलिंग टावर और कोल यार्ड के आसपास रहने वाले लोगों को प्रदूषण की वजह से चर्म रोग, सांस की तकलीफ और कई गंभीर बीमारियां झेलनी पड़ रही हैं।
SDM सरोज मंहिलागे ने इस संवेदनशील मुद्दे पर गंभीरता दिखाई और सभी पक्षों की बात सुनी। बालको प्रबंधन की ओर से सुमन सिंह मौजूद थे, जबकि शांतिनगर पुनर्वास समिति से आर नारायण, डिलेन्द्र यादव, रितेश नथ्थानी, राजू मंहत, निखिल मित्तल, राजा शर्मा, विनय यादव, कालावती तिवारी, सेवती सिंह, डोलस्कर जी, राजू चौधरी और दिनेश सैनी ने हिस्सा लिया। प्रभावित परिवारों की ओर से पी तुलसी, योगेश, सौरभ अग्रवाल, राजेश सेठ और धीरज झा जैसे लोग भी अपनी बात रखने पहुंचे। चर्चा के बाद SDM ने अगली बैठक 13 अप्रैल को तय की, ताकि इस समस्या का स्थायी हल निकाला जा सके।
प्रदूषण ने छीना चैन, बीमारियां बनीं साथी
शांतिनगर और रिंग रोड बस्ती के लोग हर दिन एक जंग लड़ रहे हैं। कुंलिग टावर और कोल यार्ड की वजह से हवा में धूल और जहरीले कण फैल रहे हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, कोई भी इस प्रदूषण से अछूता नहीं है। एक प्रभावित परिवार के सदस्य ने बताया, “हमारे बच्चे सांस की बीमारी से जूझ रहे हैं, त्वचा पर चकत्ते पड़ गए हैं। प्रदूषण बस्ती अब जेल बन गया है।” यह सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि 199 परिवारों का दर्द है, जो सालों से अनसुना पड़ा है।
पुनर्वास और रोजगार: 12 साल का इंतजार
शांतिनगर पुनर्वास समिति का आरोप है कि बालको प्रबंधन ने वादे तो बहुत किए, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं हुआ। 12 साल पहले इन परिवारों को उम्मीद दी गई थी कि उन्हें नई जगह बसाया जाएगा और स्थायी रोजगार मिलेगा। लेकिन आज तक न तो घर मिला और न ही नौकरी। समिति के एक सदस्य ने भावुक होकर कहा, “हम मेहनत करना चाहते हैं, अपने बच्चों को बेहतर जिंदगी देना चाहते हैं, लेकिन हमें मौका ही नहीं दिया जा रहा।” यह सवाल हर उस इंसान के मन में उठता है जो इन परिवारों की तकलीफ को समझता है।
क्या कहता है सर्वे?
मार्च 2024 और सितंबर 2024 में हुए सर्वे ने सच्चाई को सामने ला दिया। शांतिनगर के 46 और कोल यार्ड के 76 परिवारों को प्रभावितों की सूची में शामिल किया गया। लेकिन सवाल यह है कि पहले ये परिवार क्यों छूट गए? क्या यह लापरवाही थी या जानबूझकर की गई अनदेखी? इन सवालों का जवाब बालको प्रबंधन को देना होगा। प्रभावित लोग अब और इंतजार नहीं करना चाहते। उनकी मांग साफ है- पुनर्वास, विस्थापन और सम्मानजनक स्थायी रोजगार।
अब आगे क्या होगा?
SDM सरोज मंहिलागे ने इस बैठक में निष्पक्षता और संवेदनशीलता दिखाई। उन्होंने सभी पक्षों को सुना और वादा किया कि इस समस्या का हल निकाला जाएगा। 13 अप्रैल की अगली बैठक अब इन परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बन गई है। लेकिन सवाल यह है कि क्या 12 साल की अनदेखी का दर्द इस बैठक में खत्म हो पाएगा? क्या इन परिवारों को उनका हक मिलेगा?
यह खबर सिर्फ तथ्यों की नहीं, बल्कि उन लोगों की भावनाओं की भी है जो हर दिन प्रदूषण से जूझते हैं, जो अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य चाहते हैं। यह कहानी हर उस इंसान को सोचने पर मजबूर करती है जो अपने घर में साफ हवा और सुरक्षित जिंदगी को मामूली समझता है। शांतिनगर के ये 199 परिवार हमसे बस इतना चाहते हैं कि उनकी आवाज सुनी जाए, उनकी तकलीफ समझी जाए। अगली बैठक के नतीजे क्या होंगे, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन तब तक इन परिवारों की उम्मीद जिंदा है।