“एलएंडटी चेयरमैन के बयान पर ऐक्टू की सख्त प्रतिक्रिया, 8 घंटे कार्य दिवस की सख्ती से मांग”
भिलाईनगर।
ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) छत्तीसगढ़ ने लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन के हाल ही में दिए गए बयान की कड़ी निंदा की है, जिसमें उन्होंने कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करने और रविवार को भी काम करने की बात कही थी। ऐक्टू ने 8 घंटे कार्यदिवस और 48 घंटे के साप्ताहिक कार्यदिवस के सख्त कार्यान्वयन की मांग की है।
कॉरपोरेट बयानों की आलोचना
ऐक्टू ने एलएंडटी के चेयरमैन के इस बयान को मजदूर वर्ग के अधिकारों और उनके स्वास्थ्य के प्रति गंभीर उपेक्षा बताया। यह बयान ओला, इंफोसिस और जिंदल स्टील जैसे अन्य बड़े उद्योगपतियों द्वारा दिए गए 70 घंटे कार्य सप्ताह के समर्थन में की गई टिप्पणियों की कड़ी का हिस्सा है। इन बयानों से पता चलता है कि मोदी सरकार की कॉरपोरेट-समर्थक नीतियों से प्रेरित होकर, बड़े उद्योगपतियों को श्रमिकों की भलाई की परवाह किए बिना केवल मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करने की छूट मिल रही है।
8 घंटे कार्यदिवस का ऐतिहासिक महत्व
8 घंटे का कार्यदिवस भारतीय मजदूर वर्ग के महान संघर्ष का परिणाम है। 1946 में संशोधित भारतीय फैक्ट्री एक्ट के तहत इसे डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के नेतृत्व में लागू किया गया था। यह मजदूरों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एक ऐतिहासिक कदम था।
लंबे काम के घंटों का प्रभाव
लंबे काम के घंटे श्रमिकों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि इससे तनाव, नींद की समस्या, मस्कुलोस्केलेटल विकार और उत्पादकता में गिरावट होती है। लंबे काम के घंटे थकान और न्यूरोमस्कुलर तंत्र पर प्रभाव डालते हैं, जिससे श्रमिकों की कार्यक्षमता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है।
भारत में कार्यबल की स्थिति
भारत दुनिया के सबसे लंबे औसत कार्य घंटे वाले देशों में से एक है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय श्रमिक अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सबसे अधिक घंटे काम करते हैं। कम मजदूरी के कारण, कई भारतीय दो नौकरियां करने के लिए मजबूर हैं।
सीईओ-कर्मचारी वेतन असमानता
एलएंडटी के चेयरमैन का वेतन 2023-24 में ₹51 करोड़ था, जो औसत कर्मचारी वेतन से 534.57 गुना अधिक है। यह असमानता दिखाती है कि श्रमिकों पर अधिक काम का दबाव डालने के बावजूद उन्हें उचित आर्थिक लाभ नहीं दिया जा रहा है।
महिलाओं पर असर
चेयरमैन का यह बयान महिलाओं की उपेक्षा को उजागर करता है। महिलाएं न केवल कार्यस्थल पर योगदान देती हैं, बल्कि घरेलू काम का भार भी उठाती हैं। बढ़ते काम के घंटे लैंगिक असमानता को और गहरा करेंगे।
सरकार और कानून की भूमिका
भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार, राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि श्रमिकों के स्वास्थ्य और शक्ति का दुरुपयोग न हो। इसके तहत, काम की न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियों की गारंटी दी जानी चाहिए।
ऐक्टू की मांग
ऐक्टू ने केंद्र और राज्य सरकारों से मांग की है कि कार्य घंटों को नियंत्रित करने वाले कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी कर्मचारी 48 घंटे साप्ताहिक सीमा से अधिक काम करने के लिए मजबूर न हो। साथ ही, श्रमिकों के स्वास्थ्य, सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए और कदम उठाए जाएं।
(बृजेन्द्र तिवारी, राज्य महासचिव, ऐक्टू छत्तीसगढ़)
भिलाईनगर (आदिनिवासी)। छत्तीसगढ़ की ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (AICCTU) ने लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन के उस बयान की कड़ी निंदा की है, जिसमें उन्होंने सप्ताह में 90 घंटे कार्यदिवस का सुझाव दिया। ऐक्टू ने इसे श्रमिकों के अधिकारों और उनके स्वास्थ्य पर हमला करार दिया और सप्ताह में 48 घंटे कार्यदिवस को सख्ती से लागू करने की मांग की है।
केवल कॉरपोरेट हित! श्रमिकों की उपेक्षा
यह बयान ऐसे समय में आया है जब पहले भी इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति और अन्य कॉरपोरेट दिग्गज 70 घंटे कार्यदिवस की वकालत कर चुके हैं। ऐक्टू ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की कॉरपोरेट समर्थक नीतियों के चलते श्रमिकों के अधिकारों को अनदेखा किया जा रहा है। ठेका श्रमिकों से 12 घंटे काम करवाना अब सामान्य हो गया है, जो पूरी तरह अवैध है।
8 घंटे के कार्यदिवस का ऐतिहासिक संघर्ष
वैधानिक 8 घंटे कार्यदिवस का अधिकार 1934 के कारखाना अधिनियम के संशोधन के माध्यम से लागू हुआ था। यह डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के प्रयासों और श्रमिक आंदोलनों के बलिदान का परिणाम है। ऐक्टू ने कहा कि इस अधिकार को कमजोर करना श्रमिकों के इतिहास और संघर्षों का अपमान है।
लंबे कार्यदिवस के गंभीर प्रभाव
शोध बताते हैं कि लंबे समय तक काम करने से मानसिक तनाव, नींद की कमी, शारीरिक विकार और हृदय रोग जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। थकावट उत्पादकता को भी घटाती है। ऐक्टू ने कहा कि कम कार्यदिवस और उचित वेतन से श्रमिकों का स्वास्थ्य बेहतर होता है और उत्पादकता में भी वृद्धि होती है।
भारत का सबसे मेहनती कार्यबल
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कार्यबल का औसत कार्य सप्ताह दुनिया की 10 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे लंबा है। कम वेतन के कारण कई भारतीय श्रमिकों को अतिरिक्त नौकरियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
सीईओ और कर्मचारियों की वेतन असमानता
भारत में सीईओ और कर्मचारियों के वेतन में भारी अंतर है। उदाहरण के लिए, L&T चेयरमैन का 2023-24 का वार्षिक वेतन ₹51 करोड़ था, जो औसत कर्मचारी वेतन से 534 गुना अधिक है। ऐक्टू ने इसे श्रमिकों के साथ अन्याय करार दिया।
लैंगिक असमानता को बढ़ावा
एलएंडटी चेयरमैन के बयान में महिलाओं के प्रति असम्मानजनक टिप्पणी ने लैंगिक असमानताओं को उजागर किया। भारतीय महिलाएं पहले से ही घरेलू और व्यावसायिक कार्यों का दोहरा बोझ उठाती हैं। लंबे कार्यदिवस से यह असमानता और बढ़ेगी।
सख्त कानून लागू करने की मांग
ऐक्टू ने केंद्र और राज्य सरकारों से सख्त श्रम कानूनों को लागू करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि श्रमिकों को 48 घंटे से अधिक कार्यदिवस के लिए मजबूर न किया जाए और उनके स्वास्थ्य, सम्मान और अधिकारों की रक्षा की जाए।
“श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनके स्वास्थ्य के लिए 8 घंटे कार्यदिवस जैसे अधिकारों का पालन करना न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि यह मानवीय और व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है। ऐसे बयान श्रमिक वर्ग की जरूरतों को अनदेखा कर, केवल कॉरपोरेट लाभ को बढ़ावा देते हैं।”
(बृजेन्द्र तिवारी, राज्य महासचिव, ऐक्टू छत्तीसगढ़)