शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024

रानी दुर्गावती से लेकर बिरसा मुंडा तक, जनजातीय समाज के वीरों की गाथा का जश्न!

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सांस्कृतिक नृत्य और नाट्य प्रस्तुतियों ने जनजातीय समाज के गौरव को सजीव किया

जशपुर (आदिनिवासी)। ठाकुर शोभा सिंह शासकीय महाविद्यालय, पत्थलगांव में जनजातीय समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान को समर्पित एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस कार्यशाला ने जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत और उसकी सांस्कृतिक विरासत पर रोशनी डाली। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा जनजातीय वीरों और वीरांगनाओं के जीवन पर आधारित प्रस्तुति, जिसमें रानी दुर्गावती, भारत माता, वीरनारायण सिंह, बिरसा मुंडा, संत गहिरा गुरु और राजमाता राजमोहनी देवी की भूमिकाओं को मंचित किया गया।

कार्यशाला के मुख्य अतिथि महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. डी. के. अंब्रेला थे, जबकि आनंद नाग मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और मां सरस्वती, शहीद वीर नारायण सिंह, रानी दुर्गावती, बिरसा मुंडा और भारत रत्न बाबा साहेब अंबेडकर के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया।

इस अवसर पर सरस्वती वंदना और राज्यगीत की मधुर प्रस्तुति दी गई, जोकि कु. कौशल्या नाग और उनके साथियों द्वारा प्रस्तुत की गई। हिंदी विभाग के छात्रों द्वारा विशेष नाट्य प्रस्तुति ने सभी का मन मोह लिया। इसमें वर्षा डनसेना और उनके साथियों ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं, जिन्होंने जनजातीय समाज की वीरता और समर्पण को जीवंत किया।

जनजातीय समाज की गौरव गाथा पर वक्ताओं का उद्बोधन

महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बी. के. राय ने स्वागत उद्बोधन में जनजातीय समाज के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान की संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किस तरह जनजातीय समाज के वीरों ने देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं, सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक आनंद राम नाग ने जनजातीय समाज की सांस्कृतिक विरासत और उनके वीर-वीरांगनाओं के आदर्शों पर चलने का आह्वान किया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ प्राध्यापक आर. एस. कांत ने बताया कि मुगल काल में जनजातीय वीरों और वीरांगनाओं ने संस्कृति और अपनी पहचान को बचाने के लिए किस प्रकार संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दी। प्रो. डी. के. अंब्रेला ने आदिवासी संस्कृति की विशिष्टताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति प्रेमी होता है। उन्होंने बताया कि करम पेड़ की पूजा करना और करम त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाना उनकी परंपरा का हिस्सा है, जो आपसी सद्भाव और भाईचारे का प्रतीक है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और नृत्य की प्रस्तुति

कार्यशाला के दौरान छात्रों द्वारा करमा नृत्य, सुवा नृत्य और नाट्य प्रस्तुति ने सभी का दिल छू लिया। इन प्रस्तुतियों ने जनजातीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर और उनके जीवन के संघर्ष को दर्शाया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कृष्ण कुमार पैंकरा ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन हिंदी विभाग की प्रमुख डॉ. संगीता बंजारा ने किया।

इस अवसर पर कई सम्मानित अतिथि और महाविद्यालय के शिक्षक-शिक्षिकाएं भी उपस्थित रहे, जिनमें आईक्यूएसी प्रभारी प्रो. अनुपमा प्रधान, डॉ. एस. के. मार्कण्डेय, प्रो. डी. आर. मिंज, प्रो. जे. के. भगत, प्रो. विक्रांत मोदी, प्रो. अरविंद लकड़ा और अन्य स्टाफ सदस्य शामिल थे। कार्यक्रम को सफल बनाने में राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवकों का विशेष योगदान रहा।

इस कार्यशाला ने न केवल जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम किया, बल्कि उन वीरों के संघर्ष और बलिदान को भी सजीव किया, जिन्होंने अपनी पहचान और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए

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