बिलासपुर (आदिनिवासी)। बिलासपुर के जजेस कॉलोनी के मुख्य द्वार पर आज आदिवासी छात्र संगठन के तत्वाधान में आदिवासी समाज ने एकजुटता और एकता का परिचय देते हुए आदिवासी अधिकार संरक्षण के संबंध में ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर आदिवासी छात्र संगठन के अध्यक्ष योगेश कुमार ठाकुर ने इस संबंध में बताया कि छग.उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति महोदय हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, रायपुर के पदेन कुलाधिपति हैं इसलिए उस संस्थान में रूल ऑफ़ लॉ बनाए रखना उनका अधिकार-कर्तव्य है।
पहले ही बताया जा चुका है कि एच एन एल यू 16-20-14 के अवैध आरक्षण रोस्टर से राज्य कोटा की सीटों में इस साल प्रवेश दे रहा है। गुरु घासीदास अकादमी फ़ैसले के बाद से राज्य में एससी-एसटी-ओबीसी का शिक्षा आरक्षण शून्य है। धारा 3 के अतिरिक्त छग. शिक्षण संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2012 अभी भी प्रभावशील है इसलिए इसके प्रावधानों-प्रक्रिया से बाहर जाकर कोई भी प्राधिकारी आरक्षण नहीं दे सकता| मा. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि आरक्षण की व्यवस्था करते हुए शासन को सामयिक आंकड़ों को ध्यान में रखना चाहिए। ऐसे में 1959 और 1994 में नियत की गई मात्रा के आधार पर तकनीकी बहाने से आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सवाल सिर्फ़ छग-एसटी प्रवर्ग की 10 आरक्षित सीटों के नुकसान भर का नहीं है। सितंबर 2022 के बाद से लगातार शिक्षण संस्थान प्रवेश में आदिवासी हितों को कुचलने की कोशिश की गई। सामाजिक संगठनों की संकुचित सोच और श्रेय लेने की होड़ में सुप्रीम कोर्ट और हाइ कोर्ट से अब तक इस बिंदु पर कानूनी स्पष्टता नहीं मांगी जा सकी।
शहरी क्षेत्र-निवासी और संपन्न आदिवासी अब भी इस आपदा को आदिवासी-गरिमा का विषय नहीं मानते। ग्रामीण और अनुसूचित क्षेत्र के आदिवासियों के हित के लिए पुरजोर आवाज उठाने को कोई संगठन तैयार नहीं है। आरक्षण का लाभ लेकर संपन्न बने लाखों डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, अधिवक्ता, अधिकारी-कर्मचारी, प्रतिनिधि सिर्फ़ निजी स्वार्थ (चुनाव टिकट, शहरी पोस्टिंग, राजनैतिक नियुक्ति) में चुप्पी साधे बैठे हैं। शा. कर्मचारी सेवक विकास संघ और सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग जैसे निकम्मे-नालायक संगठनों की बार-बार असफ़लता के बाद भी आदिवासी समाज के साधन संपन्न व्यक्तियों ने संघर्षरत असली जानकार और लड़ाकू लोगों का साथ नहीं दिया है।
अब भी अगर चुप रहे तो यह अपमान-नुकसान चिर स्थायी हो जाएगा।
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