छत्तीसगढ़/बस्तर (आदिनिवासी)। आदिवासी ग्राम मुंगवाल छत्तीसगढ़ राज्य में जिला मुख्यालय कोंडागांव से लगभग 45 किलोमीटर दूर एक ग्राम पंचायत है। ग्राम मुंगवाल में 13 आदिवासी ईसाई परिवार और आश्रित गांव मदनार में लगभग 40 आदिवासी ईसाई परिवार निवासरत हैं।
कुछ हफ्ता पहले ग्राम मुंगवाल के स्थानीय लोगों ने स्थानीय पास्टर रामूराम सलाम को रास्ते में रोक लिया और उन्हें स्थानीय चर्च में सेवा के लिए नहीं आने की चेतावनी दी अन्यथा उन्हें मार दिया जाएगा। मुंगवाल के आदिवासी ईसाई विश्वासी बिना पास्टर के प्रार्थना भवन में प्रार्थना करने लगे। तब ग्रामीणों ने उन्हें धमकी दी कि वह न तो प्रार्थना भवन में और ना ही गांव की किसी भी घर में प्रार्थना नहीं करे।
04 दिसंबर रविवार को सुबह 9:00 बजे गांव की एक बैठक बुलाई गई आदिवासी ईसाई प्रार्थना भवन में प्रार्थना कर रहे थे। तब उन्हें स्थानीय आदिवासियों ने बैठक में भाग लेने के लिए बुलाया। लगभग डेढ़ सौ से दो सौ की संख्या में गांव के लोगों ने ग्राम प्रधान (सरपंच) के नेतृत्व में आदिवासी ईसाइयों पर यीशु मसीह को अस्वीकार करने और उनके पहले के आदिवासी विश्वास में लौटने के लिए दबाव डाला। आदिवासी ईसाई असहमत थे। उन्होंने कहा कि वे कभी भी प्रभु यीशु मसीह का अनुयाई होना नहीं छोड़ेंगे वह कभी भी यीशु से प्रार्थना करना बंद नहीं करेंगे साथ ही अपने पैतृक गांव को भी नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी धर्म या आस्था का परिपालन करना उनका संवैधानिक अधिकार है।
आदिवासी ईसाइयों की बात सुनकर ग्रामीणों ने झूठा आरोप लगाया कि ईसाइयों ने अपने सभी आदिवासी संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को छोड़ दिया है। इसलिए वे अब अपनी जाति धर्म और गांव का हिस्सा नहीं है। उन्होंने गांव के निवासी होने का अधिकार खो दिया है। ग्रामीणों ने ईसाई आदिवासियों को आदेश दिया कि वह अपना सारा सामान छोड़कर गांव से बाहर निकल जायें। शाम 6:00 बजे ग्रामीणों ने आदिवासी ईसाइयों को बलपूर्वक गांव की सीमा से बाहर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी तक खदेड़ दिया।
वे बहुत ही अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हुए आदिवासी ईसाइयों के विरुद्ध क्रोध से चिल्ला रहे थे। आदिवासी ईसाइयों को वे अपने साथ कुछ भी ले जाने नहीं दिए। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों सहित 13 आदिवासी ईसाई परिवारों के 66 सदस्यों को खाली हाथ गांव से बाहर खदेड़ दिया गया। पीड़ितों के इस समूह में 02 से 10 साल की उम्र के बच्चे भी थे।
ग्रामीणों ने आदिवासी ईसाइयों को धमकी दी कि अगर वे ईसाई धर्म का खंडन किए बिना गांव लौटेंगे तो उन्हें मार देंगे और उनके लाशों को घने जंगलों में फेंक देंगे ग्रामीणों ने आदिवासी ईसाइयों से कहा कि गांव हमारा है और गांव में शासन हमारा है हमें संविधान, अदालत या पुलिस की परवाह नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय हमारे आदेकेवीश के अनुसार फैसला करेगा हम किसी भी आदेश का पालन नहीं करेंगे। इस गांव से बाहर निकल जाओ और कभी लौट कर मत आना पुलिस हमारा कुछ नहीं करेगी।
आदिवासी ईसाईयों ने स्थानीय पुलिस को फोन किया, घटना के बारे में बताया और मदद की के लिए गुहार लगाई। पुलिस ने गांव जाने के बजाए ईसाई आदिवासियों को बयानार थाना बुलाया जो कि गांव से 02 किलोमीटर दूर है। आदिवासी ईसाई थाना जाने का साहस नहीं कर पाए क्योंकि ग्रामीण उन्हें थाना जाने से रोकने के लिए खड़े थे। डरे सहमे आदिवासी ईसाई ग्राम बुखल की ओर चल पड़े। रात करीब 9:00 बजे वहां पहुंचे और आम के पेड़ के नीचे रात बिताई। अगली सुबह वे कोंडागांव नगर, जिला मुख्यालय की ओर चले गए और अपने रिश्तेदारों के पास कोंडागांव और आसपास की गांव में शरण मांगी।
आदिवासी ईसाई बहुत ही गंभीर हालात में हैं। जहां रहने के लिए कोई जगह नहीं है। खाने के लिए भोजन नहीं है और पहनने के लिए कपड़े भी नहीं है। पीड़ितों में से एक सुखनाथ सोरी ने कहा है कि हम नहीं जानते कि आगे क्या होगा लेकिन ईश्वर हमारी देखभाल करेंगे।
बस्तर क्रिस्चियन अलायंस के समन्वयक रेव्ह. भूपेंद्र खोरा ने घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बस्तर संभाग के अलग-अलग स्थानों पर आदिवासी ईसाई विश्वासियों और पास्टरों के साथ हिंसा, प्रताड़ना और सामाजिक बहिष्कार की इसी तरह की कई गंभीर घटनाएं हो चुकी हैं लेकिन प्रभावितों की संख्या के लिहाज से यह सबसे बड़ी घटना है।
छत्तीसगढ़ प्रोग्रेसिव क्रिश्चियंस रिलायंस रायपुर के प्रवक्ता इकबाल साइमन तांडी ने प्रेस को जारी अपने बयान में अफसोस प्रकट करते हुए कहा है कि पुलिस और प्रशासन को बार-बार शिकायत करने के बाद भी आदिवासी ईसाइयों के लिए कोई राहत नहीं है। जोकि सामाजिक सद्भाव बनाए रखते हुए भारत के संविधान में अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करना चाहते हैं।