पुराना डेटा और तकनीकी खामियों से अन्नदाता परेशान, वन अधिकार पट्टा धारकों का भविष्य अधर में
रायपुर (आदिनिवासी)। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी “एग्रीस्टैक” योजना किसानों के लिए वरदान बनेगी या नई परेशानी? यह सवाल इस समय छत्तीसगढ़ के खेत-खलिहानों से लेकर सरकारी दफ्तरों तक गूंज रहा है। योजना का उद्देश्य है – हर किसान की एक डिजिटल पहचान (किसान आईडी) तैयार करना और उन्हें योजनाओं का लाभ सीधे पहुँचाना। लेकिन जमीनी स्तर पर पुराना डेटा, तकनीकी खामियाँ और असंगतियाँ किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर रही हैं।
क्या है एग्रीस्टैक?
एग्रीस्टैक एक डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसके तहत किसानों का आधार, बैंक खाता, फसल, ऋण और बीमा का पूरा रिकॉर्ड जोड़ा जाएगा। दावा है कि इससे पीएम किसान निधि, फसल बीमा, सब्सिडी और समर्थन मूल्य पर धान खरीदी जैसे लाभ सीधे और पारदर्शिता से किसानों तक पहुँचेंगे।
छत्तीसगढ़ में इस खरीफ सीजन से धान बेचने और योजनाओं का लाभ लेने के लिए एग्रीस्टैक पंजीयन अनिवार्य कर दिया गया है।
भुइयां और एग्रीस्टैक में तालमेल की कमी
सबसे बड़ी समस्या यह है कि एग्रीस्टैक पोर्टल पर किसानों का भूमि रिकॉर्ड पुराना और अधूरा है। कई जगहों पर 2022-23 का ही डेटा दिख रहा है। इससे वे किसान वंचित हो रहे हैं, जिन्होंने हाल के वर्षों में भूमि का नामांतरण, बंटवारा या रजिस्ट्री कराई है।
राज्य का अपना पोर्टल ‘भुइयां’ किसानों का अद्यतन रिकॉर्ड दिखाता है, लेकिन यह जानकारी रियल-टाइम में एग्रीस्टैक से नहीं जुड़ पा रही। नतीजा – जब किसान च्वाइस सेंटर पहुँचते हैं, तो पंजीयन पुराने रिकॉर्ड के आधार पर खारिज कर दिया जाता है।
वन अधिकार पट्टा धारक किसानों की चिंता
सबसे गंभीर स्थिति वन अधिकार पट्टा धारक किसानों की है। भुइयां पोर्टल पर उनकी जमीन के मालिक के रूप में “छत्तीसगढ़ शासन” का नाम दर्ज है। यानी डिजिटल रिकॉर्ड में वे किसान के रूप में मौजूद ही नहीं हैं।
इससे उनका पंजीयन असंभव हो गया है। अब सवाल यह है कि क्या उनकी मेहनत की उपज समर्थन मूल्य पर बिक पाएगी? और क्या उन्हें सरकार असली किसान मानेगी?
किसानों की बेबसी और प्रशासन का जवाब
धमतरी, बलौदाबाजार और महासमुंद के कई किसान पंजीयन में हो रही दिक्कतों को लेकर कलेक्टर कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। झुरा नवागांव के किसानों का कहना है कि सहकारी समिति का कोड अपडेट न होने से भी पंजीयन अटक रहा है।
किसान बताते हैं, “हम पहले ही खेती की लागत, मौसम और बाजार से जूझ रहे हैं। अब यह डिजिटल व्यवस्था हमारी मुश्किलें और बढ़ा रही है।”
वहीं अधिकारियों ने स्वीकार किया कि समस्याएँ हैं। बलौदाबाजार के कृषि संचालक ने कहा
“एग्रीस्टैक केंद्र सरकार का पोर्टल है। पंजीयन संबंधी समस्याओं की जानकारी दी गई है और कलेक्टर के माध्यम से भू-अभिलेख विभाग से मार्गदर्शन माँगा गया है। समाधान के प्रयास जारी हैं।”
समाधान की जरूरत
स्पष्ट है कि योजना का उद्देश्य नेक है, लेकिन बिना पुख्ता तैयारी और राज्यों के पोर्टलों से समन्वय के लागू करना किसानों के लिए सजा साबित हो रहा है।
यदि सरकार ने समय रहते तकनीकी खामियाँ दूर नहीं कीं और वन अधिकार पट्टा धारकों के लिए विशेष समाधान नहीं निकाला, तो हजारों किसान अपनी मेहनत की फसल बेचने से वंचित रह सकते हैं।
एग्रीस्टैक किसानों की उम्मीद भी बन सकता है और नई चुनौती भी—यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार किस तेजी और गंभीरता से इस समस्या का हल निकालती है।