“भारत की भूमि पर भारतीयों का ऐतिहासिक अपमान!”
5 फरवरी को भारत ने भारत की जमीन पर भारतियों का जो अपमान देखा, वह इतिहास में शायद ही पहले कभी देखा हो। जानवरों की तरह हथकड़ियों में बंधे, बेड़ियों में जकड़े 104 भारतीय, जिनमें 23 महिलायें, 12 बच्चे और 79 पुरुष थे, अमृतसर के हवाई अड्डे पर अमरीकी सैनिक विमान से उतारे जा रहे थे। वे करीब 40 घंटे से अधिक से इसी दशा में थे ; रास्ते भर उन्हें अपनी जगह से हिलने की अनुमति नहीं थी। अपने हाथ से कुछ खाने-पीने की इजाजत भी नहीं थी। शौचालय जाने के लिए भी हथकड़ी बेड़ियों समेत घिसट-घिसट कर जाना और आना पड़ता था। ऐसा बर्ताब बंदी बनाई गयी आजाद हिन्द फ़ौज के साथ अंग्रेजों ने भी नहीं किया था, बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय जनरल नियाजी के साथ सरेंडर करने वाले 90 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों के साथ भारत ने नहीं किया था। और तो और, हाल में पाकिस्तान में दुर्घटनाग्रस्त हुए भारतीय पायलट अभिमन्यु सहित भारत के युद्धबंदियों के साथ पाकिस्तान तक ने नहीं किया।
यह उस देश – भारत – के नागरिकों के साथ किया गया जिसका सुप्रीम कोर्ट हथकड़ियां लगाने के खिलाफ 1978 में ही फैसला सुना चुका है और कह चुका है कि “आरोपी व्यक्तियों को अदालत ले जाते समय अंधाधुंध हथकड़ी लगाना और जेल के कैदियों पर जबरन बेड़ियां लगाना गैरकानूनी है और (अदालत की पूर्वानुमति वाले) कुछ मामलों को छोड़कर इसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए। सार्वजनिक रूप से बेतहाशा हथकड़ी लगाना और जंजीर से बांधना हमारी संवेदनाओं को अपमानित करता है, उन्हें शर्मसार करता है और हमारी संस्कृति पर कलंक है।” उस देश के नागरिकों को, जो अपराधी भी नहीं थे, इतना जलील करके उन्हीं के देश में उतारा जा रहा था। राष्ट्र-राज्य की अवधारणा में किसी भी देश में बसने वाला नागरिक, भले वह अपराधी ही क्यों न हो, उस देश का प्रतिनिधि माना जाता है, उसके साथ किये जाने वाला व्यवहार–दुर्व्यवहार संबंधित देश के साथ किया जाने वाला बर्ताव माना जाता है। इस तरह यह पंजाब और हरियाणा के उन नागरिकों के साथ किया सलूक नहीं है, जिन्हें कथित अवैध प्रवासी मानकर ट्रम्प के अमरीका ने इस भयानक दुर्दशा में भेजा ; यह करीब डेढ़ अरब की आबादी वाले भारत राष्ट्र के साथ किया गया बर्ताब है। इस पर इंडिया दैट इज भारत की सरकार ने क्या किया?
छोटे-छोटे माने जाने वाले देश भी अपने नागरिकों के साथ इस तरह की ज्यादतियां और बेहूदगियां बर्दाश्त नहीं करते ; इस बार भी नहीं किया। कोलंबिया और मैक्सिको जैसे देशों ने, अमरीका के नजदीक बसे होने के बावजूद अपने नागरिकों के साथ ऐसा नहीं होने दिया। बिफरे हुए सांड की तरह सींग दिखा रहे, भूखे भेड़िये की तरह लाल आंखें दिखा रहे डोनाल्ड ट्रम्प के हवाई जहाज इन देशों ने अपने हवाई अड्डों पर उतरने नहीं दिए, उन्हें वापस लौटा दिया। और इस तरह अपने नागरिको और राष्ट्र-राज्य की गरिमा बनाये रखी। उनके राष्ट्रपतियों ने भेड़िये की आंखों से आंखें मिलाकर उसे उसकी हैसियत दिखा दी। मेक्सिको की महिला राष्ट्रपति क्लाउडिया शेनबौम पार्डो ने अपनी रीढ़ पर सीधे खड़े होकर अमरीकी धमकियों को अनसुना कर दिया। कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्ताव पेट्रो ने तो ट्रम्प और उसकी अमरीका को उस्की औकात ही याद दिला दी। उन्होंने कहा कि “वे दुनिया भर से आकर अमरीका को आज का अमरीका बनाने वाले मेहनतकश अमरीकियों को अमरीका मानते हैं, उनका सम्मान करते हैं, दासों के व्यापारी किसी गोरे गुलाम (ट्रम्प) से हाथ तक मिलाना मेरे जमीर को स्वीकार नहीं है।“ पेट्रो ने कोलंबिया को दुनिया का दिल बताते हुए आर्थिक प्रतिबंधों की धमकियों के जवाब में कहा कि “हम हवाओं, पहाड़ों, कैरेबियन समंदर और स्वतंत्रता की धरती के लोग हैं, किसी आर्थिक ताकत से नहीं डरते।“ लातिनी अमरीका और तीसरी दुनिया के खुद्दार नेताओं की हत्याओं के अमरीका के जघन्य रिकॉर्ड का उल्लेख करते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि “आप (ट्रंप) मुझे मार देंगे, लेकिन मैं अपने लोगों में जीवित रहूंगा, जो आपके लोगों से पहले, अमेरिका में हैं।“
जब महज सवा पांच करोड़ की आबादी वाले देश का राष्ट्रपति इस बेबाकी के साथ बोलते हुए अमरीकी जहाज़ों को उतरने नहीं दे रहा था, तब स्वयंभू विश्व गुरु, अबकी बार ट्रम्प सरकार, हाउडी मोदी और हाउडी ट्रम्प की नौटंकी करने वाले, ट्रम्प को अपना माय डिअर फ्रेंड बताने वाले, उसके शपथ ग्रहण समारोह के बुलावे के लिए नया परिधान सिलाए बैठे, उसे खुश करने के लिए अमरीकी ऑटोमोबाइल कंपनियों के मालों पर कस्टम ड्यूटी घटाने वाले नरेन्द्र मोदी मौनी बाबा बने कुंभ के मेले में डुबकी लगा रहे थे। उनकी सरकार आजाद भारत के इतिहास को कलंकित करके ट्रम्प का बाजा बजा रही थी। अपनी सरकार की कायरता और रीढ़विहीनता को सही ठहराते हुए मोदी के विदेश मंत्री जयशंकर सिंह ट्रम्प के प्रवक्ता की तरह उसके अरक्षणीय कुकर्म की रक्षा करने में प्राणप्रण से जुटे हुए थे। अपने देश, जिसके वे विदेश मंत्री हैं, के नागरिकों के साथ हुई अमानवीयता को पूरी बेशर्मी के साथ जायज और ‘जरूरी’ ठहरा रहे थे।उन्होंने कहा कि “हथकड़ियां लगाना अमरीका की नीति है।“ झूठ तक बोला कि महिलाओं और बच्चों को हथकड़ियां नहीं लगाई गयी थीं, जबकि अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरी महिलाओं ने मीडिया को बताया कि हथकड़ियां उन्हें भी पहनाई गयी थीं। अमरीका में भारतीय दूतावास ने अपने नागरिकों को कोई कानूनी सहायता या मदद देने के लिए क्या किया, यह पूछे जाने पर जयशंकर ने ढीठता के साथ कहा कि किसी ने मदद मांगी ही नहीं थी।
जयशंकर कोई नौसिखिया नहीं है, पुराने और प्रशिक्षित डिप्लोमेट हैं ; विदेश मंत्री बनने से पहले वे विदेश सचिव थे, इस नाते उन्हें पता होगा कि अन्य देशों के नागरिकों के लिए प्रोटोकॉल क्या होते हैं, दूतावासों के काम क्या होते है। इस सबका नतीजा यह निकला कि बजाय माफ़ी मांगने के भारत में बैठा अमरीका का राजदूत प्रेस बयान करके उकसाने और चिढाने वाले बयान देने तक पहुंच गया और वापस भेजे गए भारतीयों को दूसरे ग्रह का प्राणी – एलियंस – बताने लगा। उसके इस बयान पर आपत्ति जताने का साहस भी स्वयंभू राष्ट्रवादियों की सरकार नहीं जुटा पायी। इसका गिरोह गुरु की गीले गुड़ की अवस्था से आगे ‘चेले शक्कर हो गए’ की मुद्रा में इनसे भी ज्यादा झुक कर डेविल्स एडवोकेट बन शैतान की वकालत करने तक उतर आया। ‘कोई अपराध करेगा तो उसके साथ अपराधियों जैसा ही बर्ताव किया जायेगा’ के तर्क दिए जाने लगे। एक मोहतरमा तो ऐसा कर दिखाने के लिए अमरीका और ट्रम्प की तारीफों के पुल बांधती नजर आयीं। ‘पहली बार ऐसा नहीं हुआ, कांग्रेस की सरकार के दौरान भी ऐसा हुआ था’ जैसे बचाव किये जाने लगे ; यह बात अलग है कि सरे बाजार पाबजौला लाने जैसा इस बार हुआ है, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। गोदी मीडिया तो लगभग थैंक्यू ट्रम्प की मुद्रा में गिनाने लगा कि सवारी वायुयान से भेजने का सस्ता रास्ता चुनने की बजाय मिलिट्री के जहाज से भेजा गया, जो ज्यादा महँगा पड़ता है। यह वैसी ही बात है कि जूते मारे तो मगर फटी पुरानी पन्हैयाँ नहीं मारी वुडलैंड और आडीदास के जूते इस्तेमाल किये।
इसका गिरोह गुरु की गीले गुड़ की अवस्था से आगे ‘चेले शक्कर हो गए’ की मुद्रा में इनसे भी ज्यादा झुक कर डेविल्स एडवोकेट बन शैतान की वकालत करने तक उतर आया। ‘कोई अपराध करेगा तो उसके साथ अपराधियों जैसा ही बर्ताव किया जायेगा’ के तर्क दिए जाने लगे। एक मोहतरमा तो ऐसा कर दिखाने के लिए अमरीका और ट्रम्प की तारीफों के पुल बांधती नजर आयीं। ‘पहली बार ऐसा नहीं हुआ, कांग्रेस की सरकार के दौरान भी ऐसा हुआ था’ जैसे बचाव किये जाने लगे ; यह बात अलग है कि सरे बाजार पाबजौला लाने जैसा इस बार हुआ है, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। गोदी मीडिया तो लगभग थैंक्यू ट्रम्प की मुद्रा में गिनाने लगा कि सवारी वायुयान से भेजने का सस्ता रास्ता चुनने की बजाय मिलिट्री के जहाज से भेजा गया, जो ज्यादा महँगा पड़ता है। यह वैसी ही बात है कि जूते मारे तो मगर फटी पुरानी पन्हैयाँ नहीं मारी वुडलैंड और आडीदास के जूते इस्तेमाल किये। यही है मोदी का असली इंडिया; अमरीका और ताकतवार लुटेरी साम्राज्यवादी ताकतों के आगे झुका झुका, कातर और घिघियाता हुआ बना दिया गया इंडिया।
एक जमाने में जो भारत दुनिया के सवा सौ गुटनिरपेक्ष देशों का सर्वमान्य और सम्मान्य नेता था, जिसने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के वक़्त भेजे सातवें अमरीकी बेड़े से डरे बिना उसे लौटने को विवश कर दिया था, जिसकी विश्व शान्ति हिमायती और समृद्ध देशों के वर्चस्वकारी युद्ध की मुखालफत करने वाली नीतियों ने खुद को दुनिया का दरोगा मानने वाले अमरीका में इतनी खीज पैदा कर दी थी कि रिचर्ड निक्सन और हेनरी कीसिंजर जैसे उन्हें दर्ज करते-करते गाली-गलौज तक उतर आये। उस भारत को आज यहाँ लाकर खड़ा कर दिया गया है कि उसके मौजूदा हुक्मरान अपने नागरिकों के साथ हुए अमानवीय दुर्व्यवहार पर मिमियाना तो दूर, उलटे उसकी हिमायत कर रहे हैं। यह बात इसलिए और अधिक जरूरी है, क्योंकि अभी सिर्फ 104 हिन्दुस्तानी लौटे हैं ; अमरीकी प्यु रिसर्च सेंटर के अनुसार अमरीका में कोई 7 लाख 25 हजार भारतीय ऐसे हैं, जिन्हें अवैध माना जाता है। इनमें से 18 हजार तो ट्रम्प छांट भी चुका है और अगले जहाज़ों से वे आने भी वाले है। मोदी जी के इस इब्तिदाए ट्रम्प इश्क में होता है क्या, यह आगे आगे उनके अपने गुजरात को भी देखना है, क्योंकि अमरीकी दावे के मुताबिक़ करीब दस लाख (एक मिलियन) भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं – जिनमे बड़ी संख्या गुजरातियों की है ; तकरीबन एक लाख भारतीय बिना कागज पत्तर के दाखिल होने की कोशिश – डंकी करते हुए – हर साल पकड़े जाते हैं। उनमें भी गुजराती सबसे ज्यादा होते हैं। ये ही मेडीसन स्क्वेर की उस भीड़ को बनाते हैं, जो “मोदी-मोदी” करती है।
सवाल ये है कि ये वैध-अवैध, अमरीकी-अनअमरीकी तय करने का आधार क्या है? कोलंबिया के राष्ट्रपति ने ट्रम्प को ठीक ही याद दिलाया है कि वे उनसे पहले, बहुत पहले से वहां हैं। दक्षिण अमरीका, अफ्रीका और एशिया से गुलामों को लाकर बेचने वाले गोरों के पहले से वे हैं ; ट्रम्प और उन जैसे लुटेरे ही बाहर से आये है और अनअमरीकन है। खांटी अमरीकन है किस चिड़िया का नाम? अमरीका तो रेड इंडियंस, वम्पानो आग, ज़ूनी, नवाजो, और होपी जनजातियों और चेरोकी, चोक्टाव, चिकासॉ, मस्कोगी और सेमिनोल ऐसे ही अन्य आदिवासी कबीलों का था – बाकी सब तो ट्रम्प की भाषा में कहें, तो 500 साल के घुसपैठिये ही हैं। नवम्बर में ट्रम्प के जीतने के बाद उपजी आशंकाओं से जुड़े इसी कॉलम में ट्रम्प कुनबे के अवैध प्रवासी पाखंड की हास्यास्पद विसंगति की याद दिलाई थी। उसे दोहरा नहीं रहे हैं।
इसलिए मुद्दा बाहरी और अंदरूनी का है ही नहीं। असल मुद्दा पूंजीवाद के दिवालिया होने से उपजे सन्निपात का है, मरणासन्न पूंजीवाद के वेंटीलेटर में लगी दवाओं के बेअसर होते जाने से उपजे डर और उससे बचने के नए रास्ते तलाशने का है। ट्रम्प का अमरीका उसका साक्षात उदाहरण है।
यही है मोदी का असली इंडिया; अमरीका और ताकतवार लुटेरी साम्राज्यवादी ताकतों के आगे झुका झुका, कातर और घिघियाता हुआ बना दिया गया इंडिया। एक जमाने में जो भारत दुनिया के सवा सौ गुटनिरपेक्ष देशों का सर्वमान्य और सम्मान्य नेता था, जिसने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के वक़्त भेजे सातवें अमरीकी बेड़े से डरे बिना उसे लौटने को विवश कर दिया था, जिसकी विश्व शान्ति हिमायती और समृद्ध देशों के वर्चस्वकारी युद्ध की मुखालफत करने वाली नीतियों ने खुद को दुनिया का दरोगा मानने वाले अमरीका में इतनी खीज पैदा कर दी थी कि रिचर्ड निक्सन और हेनरी कीसिंजर जैसे उन्हें दर्ज करते-करते गाली-गलौज तक उतर आये। उस भारत को आज यहाँ लाकर खड़ा कर दिया गया है कि उसके मौजूदा हुक्मरान अपने नागरिकों के साथ हुए अमानवीय दुर्व्यवहार पर मिमियाना तो दूर, उलटे उसकी हिमायत कर रहे हैं। यह बात इसलिए और अधिक जरूरी है, क्योंकि अभी सिर्फ 104 हिन्दुस्तानी लौटे हैं ; अमरीकी प्यु रिसर्च सेंटर के अनुसार अमरीका में कोई 7 लाख 25 हजार भारतीय ऐसे हैं, जिन्हें अवैध माना जाता है। इनमें से 18 हजार तो ट्रम्प छांट भी चुका है और अगले जहाज़ों से वे आने भी वाले है। मोदी जी के इस इब्तिदाए ट्रम्प इश्क में होता है क्या, यह आगे आगे उनके अपने गुजरात को भी देखना है, क्योंकि अमरीकी दावे के मुताबिक़ करीब दस लाख (एक मिलियन) भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं – जिनमे बड़ी संख्या गुजरातियों की है ; तकरीबन एक लाख भारतीय बिना कागज पत्तर के दाखिल होने की कोशिश – डंकी करते हुए – हर साल पकड़े जाते हैं। उनमें भी गुजराती सबसे ज्यादा होते हैं। ये ही मेडीसन स्क्वेर की उस भीड़ को बनाते हैं, जो “मोदी-मोदी” करती है।
ध्यान रहे 1991 में यही जंतु थे, जो समाजवाद को लगे धक्के के बाद पूंजीवादी व्यवस्था के अमरत्व और इतिहास के अंत की बात करते हुए खोपड़ियां हाथ में लिए दुनिया भर में नाच रहे थे। विश्व को एक गांव बताते हुए एलपीजी को संजीवनी बूटी, रामबाण औषधि और अमृत न जाने क्या, क्या बता रहे थे। महज 34 वर्ष में वैश्वीकरण का यह गुब्बारा पिचक गया है। दुनिया भर को लूटने वाले अमरीकी साम्राज्यवाद तक की साँसें उखड़ रही हैं। बेरोजगारी रिकॉर्ड बना रही है, गरीबी पांव पसार रही है, बहुमत अवाम की वास्तविक आमदनी द्वितीय विश्वयुद्ध के समय से भी नीचे आ रही है, क्रय शक्ति सिकुड़ रही है, उद्योग धंधे बंद हो रहे हैं और इस बदहाली के कूड़े-कर्कट पर एलन मस्क, बिल गेट्स जैसे छप्पर फाड़ मुनाफे लूट रातों-रात खरबपति बने कुकुरमुत्तों की बहार आई हुई है। यही वजह है कि दुनिया भर के देशो से अपने खिड़की-दरवाजे खुलवाने वाले अब अपने रोशनदानों तक को मूंदना चाहते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प का ‘अमरीका फर्स्ट’ का रास्ता, मेरा पेट हाऊ, मैं न जानू काऊ का रास्ता ऐसा ही रास्ता है। यह अलग बात है कि जिसे साम्राज्यवाद, खासकर अमरीकी साम्राज्यवाद, दवा समझ रहा है, वह बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक नुस्खा है। झड़पों, टकरावों, युद्धों का ऐसा नुस्खा, जो आने वाले दिनों में दुनिया के लिए अत्यंत खतरनाक साबित होगा। इसे अमल में लाने का जो तरीका – हथकड़ी, बेड़ी पहनाकर लज्जित, अपमानित कर, अपने सैनिक विमान जबरिया दूसरे देशों में उतार उन्हें उनकी हैसियत और औकात दिखाने का तरीका — चुना गया है, वह भी एक संदेश है। एक ऐसा संदेश, जो अनेक देशों की सार्वभौमिकता और संप्रभुता को ठेंगे पर रखता है – जो अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों, संयुक्त राष्ट्र संघ यहां तक कि विश्व व्यापार संगठन, सरीखी अपने अनुकूल संस्थाओं को भी अप्रासंगिक और निरर्थक बना देता है।
इस भेड़िया धसान में हमारे वालों, संघ-भाजपा और मोदी सरकार के, बेगानी शादी में दीवाना अब्दुल्ला बने फिरने की क्या वजह है? इसकी वजह इनकी विचारधारा है!! अंग्रेजी उपनिवेशवाद के प्रति इनका विनम्र दासत्व इतिहास में दर्ज है, हुकूमत में आने के बाद अमरीका के प्रति अपना भक्तिभाव इन्होने कभी छुपाया नहीं। अपने से बड़े और बलशाली से डरना इनके डीएनए में है। ये यही हीनभावना है, जो वंचितों और गरीबों को सींग दिखाने की श्रेष्ठ ग्रंथि के रूप में दिखती है। ट्रम्प जो बेहूदगी वहां कर रहा है वही काम कभी बांग्लादेशी, कभी असमिया-गैर असमिया, कभी रोहिंग्याई के नाम पर ये कर रहे हैं और मराठी, बिहारी, दिल्ली, उत्तरपूर्वियो के नाम पर अपने देश वासियों के साथ भी करते रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केन्द्रीय मंत्री के रूप में सरकारी यात्रा पर गए जॉर्ज फर्नांडीज की अमरीका में जूते मोज़े तक उतरवाकर जामा तलाशी ली गयी थी। जॉर्ज इनके एनडीए के संयोजक भी थे – मगर तब भी विरोध की चिट्ठी तक नहीं लिखी गयी। इस बार तो बोलने का सवाल ही नहीं क्योंकि ये कह ही चुके हैं कि इनके खून में व्यापार है। टैरिफ बढाने की धमकी से प्रभावित होने वाले अडानी-अम्बानी के आर्थिक हित देश की विदेश नीति, भारत की अंतर्राष्ट्रीय साख और प्रतिष्ठा से ऊपर हैं और यह भी कि जिन्हें निशाना बनाया गया है, वे मेहनत-मजदूरी करने रोजगार की तलाश में गए हिन्दुस्तानी है। वही हिन्दुस्तानी, जिन्हें उधर श्रम करने जाने पर हथकड़ी बेड़ी पहनाई जा रही हैं, तो इधर अमरीकी पूँजी को लुभाकर बुलाने के लिए भारत के मेहनतकशों को लेबर कोड्स, कृषि व्यापार कानूनों की बेड़ियों में जकड़ा जा रहा है।

दुनिया के इतिहास की तरह भारत का इतिहास भी गवाह है कि जब-जब हुक्मरानों ने घुटने टेके है, तब-तब अवाम ने मोर्चा संभाला है। इस बार भी रास्ता वही है ; इंसानी हकों, सम्प्रभुता को बचाने के लिए मिलकर खड़ा होना होगा ; इधर वालों के सामने भी, उधर वालों के सामने भी।
लेखक: बादल सरोज (लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव)





