कटिहार की घटना से गूंजा पूर्णिया: आदिवासियों पर हमले और आगजनी के खिलाफ जोरदार प्रतिवाद
कटिहार (आदिनिवासी)। 30 नवंबर 2024 को कटिहार जिले के मनसाही थाना अंतर्गत पिंडा गांव में भाजपा-जदयू संरक्षित दबंग अपराधियों ने आदिवासी सिकमी बटाईदार किसानों पर बर्बर और जानलेवा हमला किया। इस घटना में बैजनाथ उरांव की हत्या कर दी गई, जबना उरांव और एक महिला गंभीर रूप से घायल हो गए। हमलावरों ने दो ट्रैक्टरों को आग के हवाले कर दिया। इस अमानवीय घटना के खिलाफ 9 दिसंबर 2024 को पूर्णिया में आदिवासी संघर्ष मोर्चा और भाकपा-माले के संयुक्त बैनर तले जोरदार प्रतिवाद मार्च निकाला गया।
घटना पर प्रतिवाद मार्च की मांगें और संवेदनाएं
प्रतिवाद मार्च इंदिरा गांधी स्टेडियम से शुरू होकर गिरजा चौक और आर.एन. साह चौक से होते हुए समाहरणालय पहुंचा। वहां राज्यपाल के नाम जिलाधिकारी को पांच सूत्री ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में निम्नलिखित मांगे उठाई गईं।
1. बैजनाथ उरांव के हत्यारों समेत सभी अपराधियों की तत्काल गिरफ्तारी हो।
2. बैजनाथ उरांव के परिवार को 20 लाख रुपये मुआवजा और दो जले हुए ट्रैक्टरों के लिए 10-10 लाख रुपये की भरपाई की जाए।
3. घायलों को सरकारी खर्च पर समुचित इलाज मुहैया कराया जाए।
4. पिंडा गांव के आदिवासियों को मजिस्ट्रेट और पुलिस बल के संरक्षण में उनकी जमीन पर अधिकार दिलाया जाए।
5. सिकमी बटाईदारों को स्थायी हक और बेदखली पर रोक लगाई जाए।
नेताओं का संबोधन: आदिवासी और वंचितों पर बढ़ते हमलों की चिंता
प्रतिवाद मार्च का नेतृत्व कांति इस्लाम उद्दीन, चतुरी पासवान, मोख्तार अंसारी, अविनाश पासवान, चंद्र किशोर शर्मा, जमुना मुर्मू, अनुपलाल बेसरा, शिवलाल टुडू और हीरामणि टुडू जैसे नेताओं ने किया। अपने संबोधन में नेताओं ने भाजपा और जदयू की सरकारों को दलितों, आदिवासियों, वंचितों और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते फासीवादी, साम्प्रदायिक और सामंती हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया।
नेताओं ने कहा कि पिछले दस वर्षों के मोदी शासनकाल में गरीबों, दलितों, महिलाओं और आदिवासियों पर हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं। बिहार में भाजपा-जदयू के शासनकाल में भी हत्या, लूट, आगजनी और जमीन कब्जाने की घटनाएं आम हो गई हैं। पिंडा गांव की घटना इसका ताजा उदाहरण है, जहां मुख्य आरोपी गोविंद सिंह अभी भी खुलेआम पीड़ितों और किसानों को धमका रहा है।
फासीवादी ताकतों के खिलाफ एकजुटता की अपील
नेताओं ने सीमांचल में हाल ही में एक केंद्रीय मंत्री द्वारा सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिशों की भी निंदा की। उन्होंने मजदूरों, किसानों, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों और तमाम वर्गों से अपील की कि वे इन जन-विरोधी नीतियों और फासीवादी ताकतों के खिलाफ एकजुट हों।
नेताओं ने कहा, “अब समय आ गया है कि बिहार में बदलाव लाया जाए। 2025 के विधानसभा चुनाव में इन ताकतों को उखाड़ फेंककर ‘बदलो बिहार, नया बिहार’ अभियान को मजबूत किया जाए।”
प्रतिवाद मार्च ने न केवल पिंडा गांव के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग उठाई, बल्कि यह घटना पूरे बिहार में हो रहे सामंती और फासीवादी हमलों के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन का प्रतीक बन गई है। राज्य सरकार और प्रशासन को इस तरह की घटनाओं पर सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि वंचित और कमजोर वर्गों को उनके अधिकार और सम्मान मिल सके।
यह आंदोलन केवल न्याय की लड़ाई नहीं, बल्कि इंसाफ और समानता के लिए एक ऐतिहासिक संघर्ष की शुरुआत है।